दोस्तों ये विषय काफी विदित
है इसलिए ये मै आपको पहले ही बता दू की नीचे लिखे सभी शब्द मेरे या किसी इंटरनेट
से नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश के हिन्दी स्नातक में चल रही प्रोफ़ेसर गीता श्रीवास्तव
व प्रोफ़ेसर सुरेन्द्र श्रीवास्तव की लिखी पुस्तक प्राचीन भारतीय राज्य और समाज से
ली गयी है | जिसे आप सच नहीं तो कम से कम सच के आस पास तो मान ही सकते है
जाती का जन्म
दोस्तों वैसे तो जाती के जन्म पे हर देश के अलग- अलग मान्यताये है | पर अगर
हमारे सनातन धर्म यानि पुरे भारत साम्राज्य की बात करे तो हमारे ग्रंथो के अनुसार
जाती की उत्पति ब्रह्मा जी के वीराट स्वरुप से हुया था मान्यतावो के अनुसार
ब्रह्मा जी के मुख से ब्राहमण बाहू से क्षत्रिय जन्घो से वैश्य तथा पैर से शुद्रो
की उत्पति हुए थी जिसके वजह से ही शायद दोस्तों शुद्रो को सबसे निचे श्रेणी में
रखा जाता है
गीता के अनुसार जाती का निर्धारण
दोस्तों जाती के कामो के बटवारा का नाम सुनते ही आपके मन में क्षत्रियो के वंशजो को युद्ध ब्राहमणों के वंशजो को शिक्षा वैश्यों के वंशजो को ब्यापार तथा क्षुद्रो के वंशजो को सफाई या गुलामी जैसा काम करने का ख्याल आता होगा | और दोस्तों आपको जान कर अचरज होगा की कृष्ण भगवान ने भी गीता में यही मत दिया है पर कुछ अलग ढंग से दोस्तों कृष्ण भगवान के गीता में कहे शब्दो के अनुसार हमें किस भी इंसान को उसके जन्म के अनुसार नहीं बल्कि उसके गुण और कर्म के अनुसार उसे जाती में विभाजित करना चाहिए यानि अगर किसी घर में चार पुत्र है और चारो की मानसिकता व गुण एक दुसरे से अलग है यानि कोई बलवान है कोई बुद्धिमान है और कोई बिलकुल निठ्ठला है | तो उस घर मे इनकी जाती उनके पिता के जाती से नहीं बल्कि उनके गुणों से निर्धरित करनी चाहिए |
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